जीवन और मृत्यु का चक्र: एक अनंत यात्रा
पिता जा चुके थे। उस शाम की ठंडी हवा में एक सन्नाटा था, जैसे प्रकृति भी उनकी अनुपस्थिति को महसूस कर रही हो। हमारा घर, जो कभी उनके कदमों से गूंजती थी, अब खामोश है। उनके पुराने कुर्ते की महक अभी भी कोने में टंगे कपड़ों में बसी है, और उनकी कड़क आवाज़, जो कभी मुझे डाँटती थी, अब सिर्फ़ मन के किसी कोने में गूंजती है।
पिता-पुत्र का रिश्ता सिर्फ़ खून का नहीं, आत्मा का बंधन होता है। यहाँ पिता वो वटवृक्ष है, जिसकी छाँव में बेटा बड़ा होता है—कभी उसकी सख्ती से डरता है, तो कभी उसके प्यार में डूब जाता है। एक समय बाप अपने बाप को उसकी गलतियों के लिए डांटता है; कुछ सालों के बाद समय का पहिया बदल जाता है। लेकिन जब वो वृक्ष गिर जाता है, छाँव के साथ-साथ वो आश्रय भी चला जाता है। मन में एक अजीब-सा चिंतन उमड़ता है—दुःख, शून्यता, और कहीं गहरे में गर्व भी। दुःख इस बात का कि अब उनकी गोद में सिर रखकर रो नहीं सकता, न कभी रो पाया। शून्यता इस बात की कि जो सवाल अधूरे रह गए, उनके जवाब अब कौन देगा? और गर्व इस बात का कि मैं उसी इंसान का बेटा हूँ, जिसने मुझे जीना सिखाया।
कभी-कभी रात के सन्नाटे में उनकी बातें याद आती है। "बेटा, मेहनत करो, दुनिया बड़ी सख्त है," वो कहते थे। आज उनकी कही बातें सच लगती हैं, पर उनकी आवाज़ सुनने के लिए कान तरस जाते हैं। गंगा के उस पुराने पीपल के पेड़ के नीचे, जहाँ वो मुझे लेकर बैठते थे, अब अकेले बैठता हूँ तो आँखें नम हो जाती हैं। मन में एक तूफान सा उठता है—ग़ुस्सा भी आता है कि वो इतनी जल्दी क्यों चले गए, और प्यार भी उमड़ता है कि जो कुछ दिया, वो अनमोल था।
पिता की मृत्यु सिर्फ़ एक इंसान का जाना नहीं, एक पूरी दुनिया का ढह जाना है। फिर भी, उनकी यादें, उनकी सीख, और उनका नाम मेरे साथ चलते हैं—कभी आँसुओं में, तो कभी होठों पर हल्की मुस्कान बनकर। ये मिश्रित भावनाएँ ही इस रिश्ते की गहराई को बयान करती हैं—जहाँ दर्द है, वहाँ प्यार है, और जहाँ खालीपन है, वहाँ उनकी अनंत मौजूदगी है।
यह रिश्ता हमारी संस्कृति में जड़ों की तरह गहरा है, और पिता के जाने के बाद भी पुत्र के दिल में उनकी छाप हमेशा जीवित रहती है।
मेरे पिता एक समझदार इंसान थे—परिवार से बेहद प्यार करने वाले और जीवन से भरपूर। कमियाँ सबमें होती हैँ मगर मैंने उनमें कुछ ज़्यादा ही ढूंढी, क्यूंकि मैं स्वयं भी अपनी बुराईयों और कमियों का स्मारक हूँ।
उनकी हँसी, उनकी बातें, और उनका हर पल को जीने का तरीका आज भी हमारे दिलों में ज़िंदा है। फिर भी, आज दो साल बाद, हम उनके जाने का शोक मनाते हैं।
हमारे मन में भावनाओं का एक मिश्रण है—खुशी उनके साथ बिताए पलों की, और दुख उनकी अनुपस्थिति का। यह शायद जीवन और मृत्यु का वह चक्र है, जिससे कोई नहीं बच सकता। लेकिन क्या इस चक्र से मुक्ति संभव है? और मृत्यु के डर से हम कैसे उबर सकते है।
जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलू हैं। मेरे पिता के जाने के बाद, या शायद बहुत पहले ही, मैंने यह समझा कि मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत हो सकती है—शायद एक अलग स्वरूप में, एक अलग यात्रा में। यह विचार मुझे उन महान दार्शनिकों और संतों की कही बातें याद दिलाता है, जिन्होंने इस चक्र को समझा और इससे मुक्ति का रास्ता दिखाया।
बुद्ध ने मृत्यु को जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा माना। उन्होंने कहा कि दुःख का कारण हमारी आसक्ति है—चाहे वह लोगों से हो, चीजों से हो, या खुद जीवन से। जब बुद्ध के शिष्य आनंद ने उनसे पूछा कि मृत्यु के बाद क्या होता है, तो बुद्ध ने जवाब दिया, “जैसे एक दीपक बुझ जाता है जब तेल खत्म हो जाता है, वैसे ही शरीर नष्ट हो जाता है, लेकिन आत्मा का सच अनंत है।” बुद्ध का रास्ता था ध्यान और वैराग्य—जिससे हम मृत्यु के डर को खत्म कर सकें। मेरे पिता को याद करते हुए, मैं सोचता हूँ कि अगर मैं उनकी यादों को प्यार से संजोऊँ, लेकिन उनके जाने को स्वीकार कर लूँ, तो शायद यह दुख कम हो जाए।
जैन दर्शन में मृत्यु को आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताया गया है। जैन तीर्थंकर महावीर ने सिखाया कि यह शरीर केवल एक वस्त्र है, जिसे आत्मा बदलती रहती है। मेरे पिता का शरीर अब नहीं है, लेकिन क्या उनकी आत्मा कहीं और नहीं जी रही? जैन धर्म कहता है कि कर्मों से मुक्ति पाकर हम इस जन्म-मृत्यु के चक्र से बाहर निकल सकते हैं। यह सोच मुझे सुकून देती है कि शायद मेरे पिता अब एक बेहतर यात्रा पर हैं।
श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को समझाया, “न जायते म्रियते वा कदाचिन्”—आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह केवल शरीर बदलता है, जैसे हम पुराने कपड़े त्यागकर नए पहनते हैं। मेरे पिता के साथ बिताए पल मेरे लिए अनमोल हैं, लेकिन कृष्ण की यह बात मुझे सिखाती है कि उनका असली रूप—उनकी आत्मा—अमर है। यह विचार मृत्यु के डर को कम करता है और मुझे जीने की प्रेरणा देता है। फिर भी, उनकी खाली कुर्सी देखकर आँखें भर आती हैं।
एक और श्लोक है, "जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।" यानी जो पैदा हुआ, उसकी मृत्यु निश्चित है, तो शोक क्यों? पर दिल को कौन समझाए?
अगले श्लोक में, "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो," कृष्ण कहते हैँ कि समय सबका नाशक है। पिता अब नहीं हैं, पर उनकी सीख, उनकी आवाज़, मेरे भीतर कहीं जीवित है—शायद वो सचमुच कभी गए ही नहीं, बस मेरे दिल में बस गए।
बाइबिल में लिखा है, "To everything there is a season, a time to be born, and a time to die." हर चीज़ का समय है—जन्म का, मृत्यु का। फिर भी, ये समय इतना भारी क्यों लगता है?
रूमी कहते हैं, "This being human is a guest house... meet them at the door laughing, and invite them in." दुख को हँसकर गले लगाओ, क्योंकि ये भी एक मेहमान है। होमर की पंक्ति याद आती है, "Any moment might be our last. Everything is more beautiful because we’re doomed." सब कुछ सुंदर है, क्योंकि ये स्थायी नहीं।
और लाओ त्सु कहते हैं, "Being and non-being create each other." होना और न होना एक-दूसरे से पैदा होते हैं—पिता गए, पर उनकी यादें मेरे साथ हैं।
मृत्यु का डर इसलिए है क्योंकि हम अनजाने से डरते हैं, अल्पज्ञ हैँ। मेरे परिवार में आज भी पिता की बातें होती हैं—कभी हँसी के साथ, कभी आँसुओं के साथ। लेकिन क्या यह डर खत्म हो सकता है? हाँ, अगर हम इसे स्वीकार करें। बुद्ध कहते थे कि जीवन को क्षण-क्षण जीना चाहिए, क्योंकि हर पल अनमोल है। मेरे पिता ने भी यही किया—हर दिन को खुशी से जिया। उनकी मृत्यु के बाद हमें भी यही करना चाहिए—उनके जीवन से प्रेरणा लेना, न कि उनके जाने का शोक मनाना।
जैन धर्म हमें सिखाता है कि सादगी और संयम से हम अपने कर्मों को हल्का कर सकते हैं, जिससे मृत्यु एक भय नहीं, बल्कि मुक्ति बन जाए। और कृष्ण कहते हैं कि जो हुआ, उसे छोड़कर आगे बढ़ो, क्योंकि आत्मा का सफर कभी खत्म नहीं होता।
आज, दो साल बाद, मैं अपने पिता को याद करता हूँ, लेकिन अब केवल दुख नहीं, बल्कि एक उम्मीद के साथ। शायद यह जीवन और मृत्यु का चक्र हमें सिखाता है कि हर अंत एक नई शुरुआत है। हमें उनके जीवन को सेलिब्रेट करना चाहिए, न कि उनकी मृत्यु को रोना। जैसे बुद्ध ने ध्यान से शांति पाई, महावीर ने संयम से मुक्ति पाई, और कृष्ण ने कर्म से जीवन को अर्थ दिया—वैसे ही हमें भी अपने तरीके से इस डर को हराना होगा।
मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि जीवन की एक धुन है, जो हमें याद दिलाती है कि हर पल को जी भर कर जियो। मेरे पिता अब भले ही यहाँ नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनका प्यार, और उनका जीवन हमें हमेशा रास्ता दिखाएगा।
~ गौरव
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